इस्लाम और बीमारी हिंदी में

इस्लाम और बीमारी हिंदी में 



इस्लाम और बीमारी हिंदी में

  • बीमार आबिद हज़रते सय्यिदुना वह्न बिन मुनब्बेह से मन्कूल है 

दो आबिद या'नी इबादत गुज़ार पचास साल तक अल्लाह की इबादत करते रहे , पचासवें साल के आखिर में उन में से एक आबिद सख़्त बीमार हो गए , वोह बारगाहे रब्बे बारी में आहो जारी करते हुए इस तरह मुल्तजी हुए ( या'नी इल्तिजा करने लगे ) : (bimari ki dua in quran)

                    " ऐ मेरे पाक परवर दिगार  मैं ने इतने साल मुसल्सल तेरा हुक्म माना , तेरी इबादत बजा लाया फिर भी मुझे बीमारी में मुब्तला कर दिया गया , इस में क्या फ़रमा दी । " हिक्मत है ? मेरे मौला  मैं तो आजमाइश में डाल दिया गया हूं ।(bimari ki dua in quran)

                    " अल्लाह  ने फ़िरिश्तों को हुक्म फ़रमाया : इन से कहो , " तुम ने हमारी ही इमदाद व एहसान और अता कर्दा तौफ़ीक़ से हमारी इबादत की सआदत पाई , बाक़ी रही बीमारी ! तो हम ने तुम को अबरार का रुत्बा देने के लिये बीमार किया है ।  इस्लाम और बीमारी तुम से पहले के लोग तो बीमारी व मुसीबतों के ख्वाहिश मन्द हुवा करते थे और हम ने तुम्हें बिन मांगे अता बीमारी बहुत बड़ी ने मत है (dua for la ilaj bimari)


सदरुश्शरीअह , बदरुत्तरीक़ह हज़रते अल्लामा मौलाना मुफ़्ती मुहम्मद अमजद अली आ'ज़मी फ़रमाते हैं : इस्लाम और बीमारी

                           बीमारी भी एक बहुत बड़ी ने मत है , इस के मनाफेअबे शुमार हैं , अगर्चे आदमी को ब ज़ाहिर इस से तक्लीफ़ पहुंचती है मगर हकीक़तन राहत व आराम का एक बहुत बड़ा ज़ख़ीरा हाथ आता है । येह जाहिरी बीमारी जिस को आदमी बीमारी समझता है , हक़ीक़त में रूहानी बीमारियों का एक बड़ा जबर दस्त इलाज है । हकीकी बीमारी अमराजे रूहानिया ( म - सलन , दुन्या की महब्बत , दौलत की हिर्स , बुख़्ल , दिल की सख्ती वगैरा ) हैं कि येह अलबत्ता बहुत ख़ौफ़ की चीज़ है और इसी को म - रजे मोहलिक ( या'नी हलाक करने वाली बीमारी ) समझना चाहिये । (dua for la ilaj bimari)


बीमारी में मोमिन और मुनाफ़िक़ का फ़र्क रसूलुल्लाह इस्लाम और बीमारी

मोमिन जब बीमार हो फिर अच्छा हो जाए , उस की बीमारी साबिका गुनाहों से कफ्फारा हो जाती है और आयिन्दा के लिये नसीहत और मुनाफ़िक जब बीमार हुवा फिर अच्छा हुवा , उस की मिसाल ऊंट की है कि मालिक ने उसे बांधा फिर खोल दिया तो न उसे येह मा'लूम कि क्यूं बांधा , न येह कि क्यूं खोला ! (har bimari ki dua quran se)

हदीसे पाक की शर्ह : मुफस्सिरे शहीर हकीमुल उम्मत हज़रते मुफ़्ती अहमद यार ख़ान इस हदीसे पाक के तहत “ मिरआत " जिल्द 2 सफ़हा 424 पर फ़रमाते हैं : क्यूं कि मोमिन बीमारी में अपने गुनाहों से तौबा करता है , इस्लाम और बीमारी वोह समझता है कि येह बीमारी मेरे किसी गुनाह की वज्ह से आई और शायद येह आख़िरी बीमारी हो जिस के बाद मौत  ही आए , इस लिये इसे शिफ़ा के साथ मग्फ़िरत भी नसीब होती है । (har bimari ki dua quran se)

( जब कि ) मुनाफ़िक गाफिल येही समझता है कि फुलां वज्ह से मैं बीमार हुवा था ( म - सलन फुलां चीज़ खा ली थी , मौसिम की तब्दीली के सबब बीमारी आई है , आज कल इस बीमारी की हवा चली है इस्लाम और बीमारी  वगैरा ) और फुलां दवा से मुझे आराम मिला ( वगैरा वगैरा ) अस्बाब में ऐसा फंसा रहता है कि मुसब्बिबुल अस्बाब ( या'नी सबब पैदा करने वाले रब 556 ) पर नज़र ही नहीं जाती , न तौबा करता है न अपने गुनाहों में गौर । ( मिरआतुल मनाजीह ) (har bimari ki dua quran se)


 जख्मी होते ही हंस पड़ी इस्लाम और बीमारी

 ( हिकायत ) हज़रते सय्यिदुना फ़ल्ह मौसिली की अहलियए मोह -त - रमा , एक मर्तबा ज़ोर से गिरीं जिस से नाखुन मुबारक टूट गया , लेकिन दर्द से " हाए हू " करने के बजाए हंसने लगीं !! किसी ने पूछा : क्या ज़ख्म में दर्द नहीं हो रहा ? फ़रमाया : “ सब्र के बदले में हाथ आने वाले सवाब की खुशी में मुझे चोट की तक्लीफ़ का ख़याल ही न आ सका । " (la ilaj bimari ki dua)


अमीरुल मुअमिनीन हज़रते मौलाए काएनात , अलिय्युल मुर्तज़ा शेरे खुदा फ़रमाते हैं : इस्लाम और बीमारी

                                 अल्लाह की अ - ज़मत और मा'रिफ़त का येह हक़ है कि तुम अपनी तकलीफ़ की शिकायत न करो और न अपनी मुसीबत का तज्किरा करो । ' ( बिला ज़रूरत बीमारी परेशानी का दूसरों पर इज़्हार बे सब्री है अपसोस ! मा'मूली नज़्ला और जुकाम या दर्दे सर भी हो जाए तो बा'ज़ लोग ख़्वाह म ख़्वाह हर एक को कहते फिरते हैं ) (la ilaj bimari ki dua)




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